गेटकीपर
मोहन, जिसका मतलब मोहने वाला होता है, किंतु आज जिस मोहन की बात कर रहे है, उसके संदर्भ में मोहन का अर्थ “मोह न ” आशय यह है कि उसने मोह को त्याग दिया यूँ कहे कि गरीबी और परिस्थितियों ने उसे मजबूर कर दिया ऐसा करने के लिए । मोहन की अवस्था कुछ 17-18 वर्ष की रही होगी , किंतु समझ 25-30 उम्र जैसी थी । वह अभी से फ्री समय मे पढ़ाई के साथ साथ कुछ काम ढूँढ ने की मन मे ललक लिए यहाँ वहाँ घूम रहा था, एक दिन उसे काम आखिर विवेक सिनेमा में गेट कीपर का मिल ही गया । विवेक सिनेमा इस शहर का सबसे अच्छा सिनेमा था, यहां भीड़ भी रहती थी । मैनेजर श्री सुरेश थे ,वह अच्छे व्यक्तित्व और स्वभाव वाले थे । यहां गेटकीपर का काम गेट पर खड़े होकर फ़िल्म देखने वालो से टिकट लेकर उन्हें अंदर जाने दिया जाता था । जब तक पूरी फिल्म खत्म न हो जाये तब तक मोहन को वही गेट पर खड़ा होना पड़ता था, नई फिल्म जब लगती थी तब ज्यादा भीड़ होने पर धक्का मुक्की सहना पड़ता था, कभी कभी गिर भी जाता था । फ़िल्म शुरू होने से पहले आकर सफाई करनी होती थी, किंतु यह सब कार्य मोहन बड़ी लगन से करता था । जब फ़िल्म बदलती थी, तो लोग खुश होते थे कि नई फिल्म देखने को मिलेगी, किंतु मोहन मायूस होता था क्योंकि उसे शहर भर में फ़िल्म के पोस्टर चिपकाने होते थे, इसके लिए उसे पहले लोई बनाना पड़ता था, फिर पोस्टर और लोई लेकर निकल पड़ता था, चौराहे पर जाकर किसी तरह ऊपर चढ़कर पुराने पोस्टर को हटाकर , नए पर लोई लगाकर चिपकाया जाता था, हवा चलने पर वह पोस्टर मोहन से ही लिपट जाता था, उसके कपड़े लोई से लथपथ हो जाते थे ।
” आँखों मे लिए आँसू वो रोता था, रात हो या दिन कहाँ वो सोता था ”
जब फ़िल्म खत्म होती और सब चले जाते थे, तब उसकी छुट्टी होती थी, फिर थका हारा धीरे धीरे रात्रि 12 बजे अपने 10×12 के किराए के कमरे पर पहुंचता और सो जाता था, फिर नई सुबह उसी काम पर निकल जाया करता था। एक दिन मोहन गेट पर टिकट लेने के खड़ा था, तब ही उसको पढ़ाने वाले शिक्षक श्री के के शाक्यवार जी आ गए अपने परिवार के साथ फ़िल्म देखने, अब मोहन क्या करे, गेट से हट भी नही सकता था, मन मे बड़ी शर्म आ रही थी, की अब सर क्या कहेंगे , धीरे धीरे आखिर सर उसके पास ही आ गए थे और मोहन को टिकट देकर आगे बढ़ने ही वाले थे, किंतु वह समझ गए कि मोहन शर्मिंदा है, तब सर अपने परिवार के सामने ही कहा शाबास मोहन काम कोई छोटा नही होता है, बस करने की लगन होना चाहिए। तुमने इतनी छोटी उम्र में इस जवाबदारी को समझा, अभावों में रहकर भी पढ़ाई में प्रथम आते हो, तुम पर नाज है मोहन इतना कहकर सर अंदर चले गए, किंतु मोहन की आंखों से आँसू बहने लगे ।।।जेपीएल ।।।
( स्मृति पर आधारित….?)