गृहिणी (नील पदम् के दोहे)
एक गृहिणी को दे सकें, वो वेतन है अनमोल,
कैसे भला लगाइये, सेवा, ममता का मोल ।
चालीस बरस की चाकरी, चूल्हा बच्चों के चांस,
शनै: शनै: रिसते रहे, रिश्ते – जीवन – रोमांस ।
पति पथिक बन कर रहा, पत्नी सम्मुख रोज,
सम्बन्धों से ऐसे में, खो जाते हैं ओज ।
आँखों की शोभा बढ़े, जब लें काजर डार,
सुथरा मैले के सामने, और लगे उजियार ।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव ” नील पदम् “