Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Jun 2021 · 4 min read

गृहस्थ प्रबंधन!

पांच जनों का हो परिवार,
तो राशन कितना लगता है,
एक वक्त के भोजन का,
इतना तो प्रबंधन करना पड़ता है,
गेहूं चावल मंडवा झंगोरा,
आधे सेर का एक कटोरा!

दाल या सब्जी,
जो सहजता से सुलभ है,
उसी पर घर गृहस्थी,
की गुज़र बसर है,
साथ में यह भी सामाग्री चाहिए,
छौंक को तड़का,मेथी जखिया,
लहसुन प्याज,जीरा धनिया,
घी तेल जैसी भी हो व्यवस्था,
नमक मिर्च हल्दी मसाले,
स्वाद बढ़ाने को ये भी डालें!

यही दिनचर्या सुबह शाम है चलती,
तब जाकर पेट की भूख है टलती,
इतना कुछ पाने में कितना खर्च लगता है,
उसका हिसाब इस तरह से चलता है!
आटा चावल पर खर्च है चालीस रुपया,
दाल साग सब्जी पर भी तीस चालीस रुपया,
घी तेल मिर्च-मसाला,
बीस तीस रूपए इस पर भी डाला ,
जोड़ घटा कर देख भाल कर,
एक सौ का पत्ता तो खर्च कर ही डाला!

चाय सुबह की,
और नास्ता पानी,
चाय सांझ की,
एवं जुगार करने की रवानी,
इसमें भी कुछ खर्चा आता है,
दूध चाय, गुड़ या शक्कर,
बासी भोजन या फिर ,
बैकरी का लगता चक्कर!
इसमें भी चालीस-पचास लग जाते हैं,
एक दिन में डेढ़ सौ रुपए खर्च आते हैं,
हर दिन काम काज नहीं मिलता है,
हफ्ते में एक दो दिन नागा रहता है,
दुःख बिमारी का अलग झमेला है,
दवा दारू पर भी खर्च नहीं नया नवेला है!

बच्चों की शिक्षा दिक्षा की भी चिंता सताती है
स्वंय चाहे कुछ कमी रह जाएं पर उनकी मांग पूरी की जाती है,
बच्चों की आवश्यकता को पूरा करते हैं,
तो घर की आवश्यकताओं पर कटौती करते हैं,
फिर भी गुजर बसर नहीं कर पाते हैं,
जितना कमाते हैं,
उससे ज्यादा खर्च उठाते हैं,
झूठ बोल कर उधार कर आते हैं,
देते हुए नजर चुराते हैं,
एक आम इंसान की यह जिंदगानी है,
हर आम नागरिक की यही कहानी है!
काम धाम है तो उम्मीद बंधी रहती है,
घर पर बैठ कर तो जिंदगी दुभर रहती है,
कोई ना कोई झमेला उठ खड़ा होता है,
बात बे बात पर झगड़ा फिसाद होता है,
काम पर जाकर शरीर जरुर थकता है,
किन्तु मन मस्तिष्क दुरस्त रहता है!

काम पर जाना भी कुछ आसान काम नहीं है,
समय पर पहुंचने का आभास तमाम रहता है,
कभी कभी थोड़ी सी भी देरी वाहन छुड़ा देती है,
दूसरे वाहन के आने में देरी रहती है,
तब भागम भाग में रहना पड़ता है,
वाहन पर चढ़ने का जुनून सिर पर चढ़ा रहता है,
आस पास के लोगों से ताने बोली सुननी पड़ती है,
पर सवारी मिल गई है उसकी खुशी रहती है,
हां आने जाने का किराया तो चुकाना पड़ता है,
अपनी आमदनी में से ही यह भी घटता है!
यह व्यथा कथा हर बार सामने रहती है,
काम पर जाएं या फिर घर पर ही रहें,
झेलनी तो घर के मुखिया को ही पड़ती है,
घर गृहस्थी का संचालन,
कितना दुरुह होता है यह प्रबंधन,
आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया,
क़िस्सा है पुराना, नहीं है कोई नया!

एक आम इंसान की यह व्यथा कथा,
जान लीजिए साहेब जी ,
कुछ ऐसी व्यवस्था बना लीजिए,
मेरे साहेब जी,
जिसमें हर एक इंसान की सुनिश्चित आय अर्जित हो,
उस पर दिन रात खपने की चिंता ना निर्धारित हो,
वह भी आराम से सप्ताह में एक दिन गुजार सके,
बिना इस भय के की आज की आमदनी का क्या हो,
वह भी अन्य इंसानों की तरह अपने को सुरक्षित महसूस करे,
उसे भी यह अहसास हो कि वह भी इस देश का नागरिक है,
ठीक उसी तरह जैसे, उसके आस पड़ोस के लोग रहते हैं,
उसे भी देश के संसाधनों का हकदार मानिए,
उसके लिए भी एक अदद आय का साधन जुटाइए,

वह आपसे आपकी सत्ता की भागीदारी नहीं मांगता है,
वह आपसे आपके द्वारा अर्जित सुख सुविधाएं नहीं चाहता है,
नहीं है चाह उसको ठाठ-बाट की,
नहीं है मोह उसको राज पाट की,
वह तो थोड़ी सी इंसानियत की चाह रखता है,
वह कहां किसी के सुख में व्यवधान करता है,
कहां वह आपसे सत्ता का हिसाब किताब मांगता है,
वह तो दो जून की रोजी-रोटी का थोड़ा सा काम मांगता है!

वह तो अपनी ही छोटी सी दुनिया में मस्त रह सकता है,
उसे नहीं किसी के नाज नखरों की परवाह है,
उसे शिकवा है तो बस इतना ही,
उसे नक्कारा ना समझा जाए,
उसके हाथ में भी काम हो,
उसे मुफ्त का राशन कहां गवारा है,
लेकिन बना रहे हैं आप ही हमें परजीवी,
हाथ को काम दे रहे हो नहीं,
तब भुख की आग मिटाने को ,
फैला रहा हूं मैं अपने हाथ को,
वर्ना मुझे भी नहीं है गवारा,
यूं ही चिल्ला कर कुछ कहने को,
माना कि अपनी भाग्य रेखा में,
सुख नहीं लिखा होगा,
पर घुटन भरा हुआ जीवन तो,
तुम्हें भी दिख रहा होगा,
बना रहे सुख साधन तुम्हारा,
कर दो मेरे साहेब, जी!
कुछ कष्ट भी कम हमारा,
हमारी घर गृहस्थी का,
इतना तो प्रबंधन कर दो जी,
हमें भी अपने निगाहों के दायरे में रख लो जी!!

Language: Hindi
4 Likes · 4 Comments · 665 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Jaikrishan Uniyal
View all
You may also like:
*चुनावी कुंडलिया*
*चुनावी कुंडलिया*
Ravi Prakash
ताल-तलैया रिक्त हैं, जलद हीन आसमान,
ताल-तलैया रिक्त हैं, जलद हीन आसमान,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
शायरी - ग़ज़ल - संदीप ठाकुर
शायरी - ग़ज़ल - संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
देश 2037 में ही हो सकता है विकसित। बशर्ते
देश 2037 में ही हो सकता है विकसित। बशर्ते "इमोशनल" के बजाय "
*प्रणय*
हमेशा कुछ ऐसा करते रहिए जिससे लोगों का ध्यान आपके प्रति आकषि
हमेशा कुछ ऐसा करते रहिए जिससे लोगों का ध्यान आपके प्रति आकषि
Raju Gajbhiye
ये रात है जो तारे की चमक बिखरी हुई सी
ये रात है जो तारे की चमक बिखरी हुई सी
Befikr Lafz
सत्यम शिवम सुंदरम🙏
सत्यम शिवम सुंदरम🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
याद रखना...
याद रखना...
पूर्वार्थ
"पापा की परी”
Yogendra Chaturwedi
"" *आओ करें कृष्ण चेतना का विकास* ""
सुनीलानंद महंत
"तू रंगरेज बड़ा मनमानी"
Dr. Kishan tandon kranti
है जरूरी हो रहे
है जरूरी हो रहे
Dr. Rajendra Singh 'Rahi'
हिन्दी ग़ज़ल के कथ्य का सत्य +रमेशराज
हिन्दी ग़ज़ल के कथ्य का सत्य +रमेशराज
कवि रमेशराज
"सत्य अमर है"
Ekta chitrangini
वक्त घाव भरता मगर,
वक्त घाव भरता मगर,
sushil sarna
ज़िन्दगी को समझते
ज़िन्दगी को समझते
Dr fauzia Naseem shad
सगीर की ग़ज़ल
सगीर की ग़ज़ल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
तेरा मेरा साथ
तेरा मेरा साथ
Kanchan verma
*हर पल मौत का डर सताने लगा है*
*हर पल मौत का डर सताने लगा है*
Harminder Kaur
देख कर उनको
देख कर उनको
हिमांशु Kulshrestha
पहले लोगों ने सिखाया था,की वक़्त बदल जाता है,अब वक्त ने सिखा
पहले लोगों ने सिखाया था,की वक़्त बदल जाता है,अब वक्त ने सिखा
Ranjeet kumar patre
दोय चिड़कली
दोय चिड़कली
Rajdeep Singh Inda
दोहा
दोहा
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
समय
समय
Dr.Priya Soni Khare
भावो को पिरोता हु
भावो को पिरोता हु
भरत कुमार सोलंकी
ज़िन्दगी थोड़ी भी है और ज्यादा भी ,,
ज़िन्दगी थोड़ी भी है और ज्यादा भी ,,
Neelofar Khan
वीरांगना लक्ष्मीबाई
वीरांगना लक्ष्मीबाई
Anamika Tiwari 'annpurna '
*वह बिटिया थी*
*वह बिटिया थी*
Mukta Rashmi
.
.
Amulyaa Ratan
कहां खो गए
कहां खो गए
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
Loading...