गृहस्थ जीवन और जन सरोकार!
सन उन्नीस सौ ईक्कासी,
मैं हुआ गृहस्थी,
सन बयासी में,
बना सदस्य पंचायत में,
एक ओर घर गृहस्थी की थामना,
दूसरी ओर जन सरोकारों से होता सामना,
दोनों में संतुलन बनाना,
समय चक्र संग आगे बढ़ना,
करने लग गया मैं,
खेती बाड़ी,
अतिरिक्त समय में दुकानदारी,
पंचायत के कार्य में सक्रिय हिस्सेदारी!
परिवार की अपेक्षाओं का बोझ,
पंचायत की समस्याओं का बोध,
दोनों साथ साथ निभाए जा रहे थे,
उम्मीदों को पंख लगाए जा रहे थे,
घर से अधिक तब पंचायत ने उलझा दिया,
जब प्रस्तावों में हमने,
शिक्षा,स्वास्थय, सड़क,बिजली,पानी को,
चर्चा में ला दिया!
सेकेट्री से प्रस्ताव तैयार कराए गए,
प्रधान जी से हस्ताक्षर कर ब्लाक में भिजवाए गए,
अब उनकी पैरवी भी प्रधान जी को ही करनी पड़ी,
जब बी डी ओ की नजर उन पर गढ़ी,
वह कहने लगे इनका समाधान नहीं उनके पास में,
इनका अधिकार है डी एम साहब के हाथ में,
इसके लिए तो उन्ही से मिलो,
उन्हें ही लिखो और उन्ही से कहो,
हम साधारण से ग्रामीण डी एम से कैसे मिले,
था संकोच दिल में,
थी मन में हिचक,
समाधान बता गए हमें प्रमुख,
लिखो एक चिट्ठी,
चलो साथ मेरे,
जाकर मिलेंगे हम कल सबेरे!
डी एम से मिलने का कौतूहल बडा था,
पहले ना इससे कभी उनसे मिला था,
सुबह सबेरे हम तैयार हो गए थे,
प्रमुख जी की इंतजार में खड़े थे,
आने पर उनके हम साथ हो लिए,
डी एम के आफीस को हम साथ चल दिए,
पर्ची भिजवा कर समय मांगा गया,
समय मिलने पर हमें मिलने को बुलाया गया,
हमारा लिखा पत्र प्रमुख जी ने डी एम को सौंप दिया,
फिर हमारा परिचय देकर अनुरोध किया,
इनकी समस्याओं का समाधान कीजिए,
जितना भी हो सकता है वह काम कर दीजिए।
डी एम साहब ने अपने सहायक को बुलाया,
अलग अलग विषयों पर अलग अलग पत्र लिखवाया,
अलग अलग विभागों में उन्हें भिजवाया,
हमें बड़े ही प्यार से समझाया,
जो मेरे हाथ में है वह मैं कर रहा हूं,
सभी संबंधित विभागों में इन्हें भेज रहा हूं,
जिला विकास समिति की जब भी बैठक करेंगे,
तब तक ये हर विभाग अपने प्रस्ताव तैयार रखेंगे,
और जहां जिस किसी काम की जरूरत होगी,
समिति वहां पर उसको स्वीकृत करेगी।
एक दो वर्ष तक हमने इंतजार कर लिया,
फिर उसके लिए विभागों से संपर्क किया,
पता करने पर पता चला,
हमारे पक्ष में कोई नहीं था,
विधायक भी हमारा दूसरे जिले से था,
हमारे क्षेत्र को परिसीमन में उत्तरकाशी में मिलाया गया था,
उनको प्र्रदेश में मंत्री पद मिला था,
जिला विकास समिति में वह शामिल नहीं थे,
उनको यह पत्र हमने भेजे नहीं थे,!
कौन वहां पर हमारी पैरोकारी करता,
कौन हमारी समस्याओं पर ध्यान धरता,
समस्या अब जटिल बन गई थी,
विधायक से मिलने पर सहमति बनी थी,
फिर लखनऊ को जाने का कार्यक्रम बनाया,
वहां पर जाकर विधायक को पुरा किस्सा सुनाया,
उन्होंने भी पत्र डी एम को ही लिखा,
उन्ही से समाधान करने को कहा,
हमको भी अब समझ में आ गया,
बिना किसी आंदोलन के यह सब मिलने से रहा!
अब हमने तय कर लिया था,
धरने पर बैठने का प्रबंध किया था,
पंचायत घर पर ही हम बैठ गये थे,
मांग पत्र बना कर डी एम को सौंप गए थे,
कई दिनों तक हम बैठे रह गए,
प्रशासन की ओर से भी कोई नहीं आ रहे थे,
तब अचानक एक दिन एस डी एम आ गये,
आकर हमसे चर्चा करने लगे,
फिर अपनी एक रिपोर्ट उन्होंने तैयार की,
फिर हमसे उनके समाधान पर बात की,
एक एक विभाग की समस्याओं को उन्होंने जाना,
हमारी समस्याओं को उन्होंने सही माना,
और फिर धरने को वापस लेने को कहा,
हमने उन्हें अपना मंतव्य बता दिया,
जब तक समाधान नहीं हुआ,
कोई भी यहां से नहीं हिलेगा,!
तब उन्होंने हमें यह सुझाया,
तीन लोगों को अपने कार्यालय में बुलाया,
तारीख भी तय कर के बता दी,
हमसे आने की ताकीद करा दी,
निर्धारित तिथि पर हम वहां पहुंचे,
जहां पर बुलाए गए थे अन्य महकमे,
उन सब से समाधान को कहा गया,
इस तरह से हमारा यह धरना प्रदर्शन समाप्त किया,
हम भी खुश थे,चलो कुछ तो हल निकला,
शेष रह गई समस्याओं पर फिर मिलने को कहा गया,
इन सब के समाधान में काफी वक्त बीत गया,
और तभी नये सिरे से चुनावों का ऐलान हो गया,
शेष बची रह गई फिर भी कुछ समस्याएं,
इन्हें पुरी करने की जो जिम्मेदारी निभाएं,
वही अब सामने प्रधान बनने को आएं।
(यादों के झरोखे से)