गृहस्थ के राम
ऋषि, मुनि, ज्ञानी, न शास्त्र निष्ठ हूं।
गुरु, गिरजा,शंकर,न मनुज श्रेष्ठ हूं।।
न माता पिता भाई, न तो वशिष्ठ हूं।
मैं शबरी निषाद जैसा उनमें निष्ठ हूं।।
मैं न जानूं ब्रह्म न तो मैं सिद्धाश्त हूं।
दशरथसुत हैं राजा मेरे मैं गृहस्थ हूं।।