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15 Jun 2023 · 1 min read

गृहस्थ आश्रम

शांति की चाहत में,
गया पहुंच जंगल में,
मंगल की आश में,
गये पहुंच दंगल में,

मार्ग दर्शक थे जो बचपन के,
वीणा कस,
वाणी उनकी, सुनाते थे,
परम पूज्य खुद को नहीं,
उनको (संत-समाज) बताते थे,

पढ़ लिया बचपन, गौतम सा,
न जाने क्यों ?
उनके अनुयायी,
जंगल के, हर राज, छुपाते थे,
(संभावित राज)

पशु नहीं जो पाश डले,
सोच समझ लिया,
क्यों न करें,
पहले सुलह, निज तन मन से,
फिर पाया, पहले समर्थ बने,

रोटी,कपडा और मकान संग,
स्वावलंबी होने का आधार धरें,

ये सिंहासन, श्रेष्ठ सजा,
शिकायतें सब दूर हुई,
जो फैली थी, उदास मन से,

गृहस्थ में ही मंगल है,
मंगलमय ही घर है.
दंगल रहा न मन में
गृहस्थ ही श्रेष्ठ आश्रम.
~ सबका भला हो ~

Language: Hindi
178 Views
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