गृहणी का वेतन
गृहणियों को नहीं मिलता ,
अपनी सेवा और त्याग के बदले ,
वेतन कोई ।
पति और संतान का प्रेम ,
उनकी देखभाल ,
उनके चेहरों की मुस्कान ,
और थोड़ी सी प्रशंसा और उत्साह वर्धन ,
ही उसका वेतन है।
यदि मिल जाए खुशी से तो ,
गनीमत है ।
अन्यथा मन को मारकर ,
समझौता कर ,
तिरस्कार और अपमान का कड़वा घूंट ,
पीकर कार्यरत रहती है ,
अपने कर्तव्य निर्वाह में ।
ईश्वर को साक्षी मानकर ,
उसी की सेवा समझ कर ,
खुद को किसी तरह बहला कर ,
बस ! जीवन ही निर्वाह करती है ,
ऐसी रूखी और बेजान गृहस्थी में।
कोई आकर्षण नहीं रह जाता,
कोई प्रसन्नता नहीं मिलती ,
उत्साह भी शीतल ही रहता है ।
क्या करे ! वक्त ही तो गुजारना है ,
ऐसे हालात में।
अब जरा कोई पूछे परिवार जनों से ,
क्या कोई घाटा हो जाता है ,
अपनी गृहलक्षमी को एक प्रेम ,
देखभाल और प्रशंसा का वेतन देने में?