” गूगल बनि गेलाह गुरु द्रोणाचार्य “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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हम स्वयं लिखैत छी …..आ आनक श्रृजनात्मक कृति सबहक अध्ययन सेहो करैत छी !…. प्रत्येक रचनाकार आ कवि लोकनिक कृति में अधिकांशतः कोनो न कोनो अनमोल निधि निहित रहित अछि !….. हम यदि शांतचित और एकाग्रता सं ओकर अध्ययन करैत छी त यथासंभव ज्ञानक आलोक हमरा भेटैत अछि !…. नव -नव शब्दक उपयुक्त प्रयोग ,…..विभिन्य भावक दर्शन ,….. उल्लास …..और …..व्यथा कें व्यक्त करबाक विधि आ कुशल प्रस्तुतिक भंगिमा कें देखि…. हमरा लोकनि कें बहुत किछु सिखबा कें मंत्र भेटैत अछि !….. किनको -किनको रचनाक अवलोकन करिते आत्मविभोर भ जाइत छी…आ सोचय पर विवश भ जाइत छी…. कि ‘ काश !…. हमहूँ एहने भ सकतहूं …..गंगाक पवित्र धारा सं हमारो माथ शिक्त होइते ! … . धनुष -बाण त सब रखि सकैत छथि…. परन्तु अर्जुन सब नहि बनि जेताह !…. सरिपहुं !….. …एकलव्य त हम बनिये सकैत छी !…. लगन ,…परिश्रम ,….चाह ….आ ….. लक्ष्य भेदबाक लालसा ……यदि हमरा मे निहित अहि त बुझु विजय पताका हमरे हाथ लागत !….. हमरा लग गूगलक महान ब्रह्मास्त्र अछि… गूगल आब बनि गेल छथि हमर पूज्य गरु …..द्रोणाचार्य… जिनकर आशीष सदेव हमरा लोकनिक माथे पर अछि !…. हम एकर उपयोग यदि यथोचित रणक्षेत्र मे करब त हमरा लोकनि कें अर्जुन बनय सं कियो नहि रोकि सकताह…………. ………….. !
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखण्ड
भारत