गूंजा बसंतीराग है
गूंजा बसंतीराग है ,
मन में भरा उल्लास है,
जुट पड़े नव निर्माण में सब,
ले मुदित मन अभिलाष है।
प्रकृति भी नव यौवना बन ,
हो प्रसन्न लेती अंगड़ाई,
झूमी धरा हर्ष से भरकर,
पेड़ों पर कलियां मुस्काई।
पौष बीता माघ बीता ,
रह गए थे सिमटकर,
कुछ न तब था सूझता ,
थम गए थे राह पर।
लेकिन तुम्हे अब जागना है,
त्याग आलस स्वार्थ निज,
प्राप्त करो निज लक्ष्य को,
हो प्रज्वलित जीवन तुम्हारा।
जो न अब भी जाग पाया ,
वो न जागेगा कभी,
घुट घुट मरेगा सारा जीवन,
कर न पाएगा खुद को क्षमा कभी।
आया फाल्गुनी मास है,
मौका तुम्हारे पास है,
मन में ले दृढ़ संकल्प ,
कर दो अपनी कीर्ति स्थापित।