गूंगा ज़माना बोल रहा है,
गूंगा ज़माना बोल रहा है,
मैं बहरा सुन रहा हूँ।
अंधा रास्ता दिखा रहा है,
लेकिन मैं मृत बन रहा हूँ।
यह रात नहीं है,
इन बंद आँखों से कह दो।
जो सफर शून्य से शुरू हुआ था,
वो शताब्दी पर ख़त्म हो रहा है।
बिंदेश कुमार झा।
गूंगा ज़माना बोल रहा है,
मैं बहरा सुन रहा हूँ।
अंधा रास्ता दिखा रहा है,
लेकिन मैं मृत बन रहा हूँ।
यह रात नहीं है,
इन बंद आँखों से कह दो।
जो सफर शून्य से शुरू हुआ था,
वो शताब्दी पर ख़त्म हो रहा है।
बिंदेश कुमार झा।