गुज़र गया ज़माना ….
गुज़र गया ज़माना सुरीले ,सुमधुर गीत-संगीत का ,
अब तो बस चारों ओर शोर ही शोर ,बस शोर है.
हमारे दिल तो क्या ,हमारी रूह पर भी था जिसका राज ,
है अब भी वही खुमार ,मगर इनमें कहाँ वोह असर है.
ना उर्दू के अदब और ना ही हिंदी साहित्य के संस्कार ,
आज के गीतों में बस तुकबंदी और अश्लीलता बेशुमार है.
संगीत की शास्त्रीयता तो ना जाने कहाँ खो गयी !,
सुगम संगीत भी नहीं यह तो फूहड़ता का बाज़ार है.
सच्चे संगीत में तो होती है रूहानियत ,सुकूं और शांति ,
आज का संगीत तो जीवन में लगा एक आजार है.
आज का संगीत को संगीत कहना भी संगीत की तोहीन है ,
संगीत कहाँ है यह ? कानो में पड़ता यह पारा /खंजर है.
संगीत संगीत रहेगा भी कहाँ से ,संगीत के मर्मज्ञ जो चले गए ,
वोह कर्मठ ,परिश्रमी, समर्पित, गायक,संगीतकार ,गीतकार चले गए .
काश ! लौट के आ जाये ज़माना फिर वही सुमधुर गीत-संगीत का ,
जिसके लिए कोलाहलों से थकी जिंदगी आज भी मुन्तजिर है.