गुस्ताख़ निग़ाह
सर्द हवा के झोंके सा एहसास तेरा,
मेरे वज़ूद का इक हिस्सा न बन जाए कहीं .
तेरी गुस्ताख़ निग़ाहों ने ढाए जो सितम ,
लव खुले तो आंसू न छलक जाएं कहीं .
तुम सुर्ख से गुलाब की खुश्बू में बसी ,
मैं चुभता कोई कांटा तेरे साए तले,
हंसी चेहरे पर लहराती जुल्फ़ों की घटा ,
प्यास दिल की बुझाने बलखाती चली,
बेइंतहा दर्द जब सुकूँ दिल को पहुंचाए ,
शोख़ ज़ज्बात फिर से न मचल जाए कहीं
तेरी गुस्ताख़ निग़ाहों ने ढाए जो सितम ,
लव खुले तो आंसू न छलक जाएं कहीं.