गुस्ताखे दीदार न गुस्ताख हो जाय
गुस्ताखे -दीदार न गुस्ताख हो जाए
यूँ न उठा के देख ऐ जालिम रुख से परदा हटाकर।
कि तेरी जूर्रत में जूर्रत न गुस्ताख हो जाए।
शमाँ जलती है परवानों की मैकशी में हर रात….
तेरी जूर्रत में ऐ काफिर सबकुछ न खाक हो जाए।
ऐ मौत दो वक्त ठहर कि कर लें गुफ्तगू …
इस जुस्तजू में दीवानगी न खाक हो जाए।
तेरे दीद की मैकशी में ऐ हमनवाज कुछ बचा है।
वो भी न खाक हो जाए….
बिसमिल्लाऐ गुफ्तगू में कदम जब बढ़ाया…
ऐ हमनवाज कदम देख न गुफ्तगू की मैकशी में न पनाह हो जाये।
मिल्कियते रंजीश में कब तक रहें…..
ऐ मौत दो वक़्त ठहर जब तक न दो प्याले खाक हो जाये।
मैखाने के पैमाने जब तक छलके….
आ मिल ऐ ज़िन्दगी जब तक न जवाँ हो जाए।