गुल गुल गुलशन गुलजार करता
गुल-गुल गुलशन गुलजार करता
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गुल-गुल गुलशन गुलजार करता है,
काँटा फूलों से प्यार करता है।
खिलती कलियों से रोनकेँ होती,
भँवर बोंडी दीदार करता है।
लहरों में जब – जब फंसती नावें,
नाविक ही नैया पार करता है।
यारो जैसा मिलता सहारा सा,
आगे बढ़ कर दीवार करता है।
मनसीरत पवनो के संग लहराता,
मौसम बदला बीमार करता है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)