दिल्ली की बर्फ़… गुल्लू का गोला
दिल्ली की बर्फ़… गुल्लू का गोला
आज फिर बर्फ़ के गोले वाला गुल्लू की झुग्गी के बाहर रोज़ाना की तरह खड़ा था । उसकी रेहड़ी के चारों तरफ़ बच्चे थे मगर आज भी उसकी मां के पास ₹20 नहीं थे जिससे वह अपने गुल्लू को बर्फ़ का गोला खरीद देती । पति की मृत्यु के बाद शाम की रोटी का इंतजाम करना ही दूबर होता है उसके लिए… गुल्लू बाहर क्यों खड़ा है, भीतर आ जा । धूप से लूं लग जाएगी । यह बर्फ़ का गोला अच्छा नहीं है । गर्मी में खाने से बीमार हो जाते हैं ।माई तू तो सर्दी में भी यही कहती है । मुझे पता है तेरे पास पैसे नहीं है इसलिए तो मना कर रही है । बापू के मरने के बाद तू अकेली हो गई है न… तू चिंता मत कर मैं बड़ा होकर बहुत पैसा कमाऊंगा और फ्रिज भी लूंगा जिससे तू मुझे रोज बर्फ़ का गोला खिलाना । मां मुस्कुराती हुई गुल्लू के माथे को चूम लेती है… और मन ही मन भगवान तेरा ही आसरा है; सबकी इच्छा पूरी करने वाला एक तू ही है । मां की यह बात सुनकर गुल्लू भगवान की फोटो के पास जाता है और हाथ जोड़कर पता नहीं क्या फुसफुसाता है …और मां के पास आकर सो जाता है । गरीब मजदूरों का जीवन ऐसा ही होता है भगवान ही उनकी नैया के खिवैया होते हैं ।
सारे बच्चे बर्फ़ का गोला खा रहे हैं और गुल्लू झुग्गी की चौखट पर खड़ा है अचानक तेज हवाएं चलने लगती हैं बिन मौसम बारिश और ओलावृष्टि सारी गली और सड़क को गलीचे की तरह भरकर शिमला बना देती है । किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि दिल्ली जैसे मैदानी क्षेत्र में भी बर्फ़ गिर सकती है । गुल्लू खुले में आता है और मुट्ठी में बहुत सारी बर्फ़ भरकर सीधे भीतर झुग्गी में मां के पास आकर… मां, मां बर्फ़ का गोला । यह कहां से लाया । मां बाहर … कहते हुए मां को बाहर खींचकर लेे आता है । बर्फ के गोलेवाला ओट में खड़ा है । आसमान से झनझन – झनझन ओले बरस रहे हैं । पूरी सड़क सफेद चादर ओढ़े हुए चांदनी बरसा रही है । गुल्लू के हाथ में गोला और गोलेवाले को देखकर मां आसमान में देखती है और मन ही मन मुस्काती है । गोलेवाला अपनी रेहड़ी छोड़कर रंगीन बोतलों को लिए गुल्लू के गोले को मीठा और रंगीन बना देता है । आज गुल्लू और गुल्लू की मां का विश्वास जीत गया ।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि ईश्वर में आस्था का प्रतिफल सदैव हितकर होता है ।
डॉ. नीरू मोहन ‘ वागीश्वरी ‘
शिक्षाविद्/ प्रेरकवक्ता/ लेखिका / कवयित्री/समाजसेविका