गुल्लक यादों की
मेरी गुल्लक है मेरी डायरी
जिसमें जमा की हुई हैं मैंने
ढेर सारी खुशियां, मुस्कुराहटें
कुछ दस्तक, क़ुछ आहटें।
कुछ उदासी और दर्द भी
कुछ गर्म, कुछ सर्द भी।
मेरा बचपन और जवानी
कुछ अनकही कहानी।
पापा के दिखाए सपने
पीछे छूट गए कई अपने।
सखियों की ठिठोली
राखी, दीवाली, होली।
उपलब्धियां बेशुमार
इनामों की लंबी कतार।
सर पे बुज़ुर्गों का हाथ
और हमसफ़र का साथ
जीवन को पूर्णता देते बच्चे
ज़्यादा समझदार,थोड़े कच्चे।
हर पन्ना एक कहानी
कहीं आग,कहीं पानी।
पन्ने …थोड़े …बचे हैं
किफायत से खर्च करूंगी,
बिना गुल्लक तोड़े
यूँ ही ना मरूँगी।
खुशी भरे लम्हों की यादें
साथ ले जाऊंगी।
दुख दर्द समेटे पन्ने
फाड़ फैंक आऊँगी।
★★★धीरजा शर्मा★★★