गुलें-ए-चमन
कैसा गुलें-ए-चमन है,
कैसी सओख़ बहार है।
जिंदगी पर रहते है सितम,
ख़ैर जिंदगी से ही प्यार है।
मुद्दतें लाख कोशिशें कि है,
अब किस्मत से!
या तो आर है या तो पार है।
मुकाम हर मंजिल कि सह नहीं,
पर रुकना भी तो नहीं आसान है।
हर किसी कि पहुंच में नहीं आसमाँ?
फिर भी हवा-ए-आसमाँ के लिए;
ख्वाबों में इंतिज़ाम है।