क्षणभंगुर गुलाब से लगाव
मैं सतत भंवर बन जाता हूं
जिसे फूलों से होता है मोह
कल्पना की समंदर में डूबा रहता हूं
कुसुम की रसो में खोया रहता हूं
पर निज अतीत को याद कर मैं
फूलों से उड़, गगन में खो जाता हूं मैं ।
मैं अक्सर तितली बन जाता हूं
जो वृतों से वृतों पर जाया करती है
ऐ गुलाब ! तेरी माया, कांटे बड़ चुभाती है
अब मैं भी ठान लिया, तुमसे विरह है होना
जा गुलाब जा, मुझे है तुझसे दूर जाना
पर आसान नहीं है, जाना तुमसे दूर “गुलाब” ।