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28 Jan 2022 · 1 min read

गुलाबों सा …

गुलाबों सा मैं महकता ही नही
और ख़ार कोई चुनता ही नही

तेरी उन्सियत का मलाल न था
कमबख़्त दर्द ये जाता ही नहीं

उल्फ़त में तेरी कर लूँ बग़ावत
पर साथ कोई निभाता ही नहीं

मुरझा गए गुल सबा भी सूखी
तू इस गली से गुजरता ही नही

तेरा महल रौशन हुआ चरागों से
मेरे घर का अंधेरा जाता ही नही

ये इश्क़ मसरूफ़ है किस क़दर
दहलीज़ पे मेरी ठहरता ही नही

इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई इक मेरे सर
अपना गिरेबां तू झांकता ही नही

तू ज़िंदगी का लुत्फ़ उठाता रहा
हमें मरना तलक आता ही नही

रेखांकन।रेखा

Language: Hindi
251 Views

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