गुलाबी स्त्रियां
गुलाबी स्त्रियाँ
हर रंग में
जिंदगी ढूँढतीं
लम्हों को
त्योहार बनाती
न जाने कितने रंग बिखराती
ये गुलाबी स्त्रियाँ
घर का हर कोना सजाती
कभी खुद संवरती
कभी आँखों में
अधूरे सपनो का दर्द लिए
उम्मीदों का चिराग जलाती
दिल समंदर कर लेती
ये गुलाबी स्त्रियाँ
न जाने क्यूँ
खुशियों को दूर रखने के
बहाने ढूंढ लेती
कभी समाज कभी
खुद को ढाल बना लेती
सुखों से बचती बचाती
कोर तक आए आँसुओ से
इंद्रधनुष रच लेती
ये गुलाबी स्त्रियाँ
पाव जमीन पर
ऊँची उङानो को भरती
रीति-रिवाजों में
कर लेती फेर बदल
अपने सपनो की सीङी पर
चढ इतराती ये गुलाबी स्त्रियाँ
कुछ लम्हों की
बरसातों ने
जीवन को
सौगात किया
हर इक मौसम को
जी लेती
कोख में मारी जाती
फिर भी
सृजन का गीत रचाती
ये गुलाबी स्त्रियाँ