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13 Jul 2022 · 1 min read

#गुरू#

दोहा – ज्ञान बिना मिलता नहीं,
इस जग में सम्मान।
गुरू ज्ञान का दाता,
जो करता भव से पार।।

बिना ज्ञान के हर मनुज,
हैं पशु के समान।
ज्ञान की अलख जलाए जो
वो गुरू वर हैं आप।।

मेरी पहली गुरू मेरी मां को मैं प्रणाम करती हूं।
मेरे दूजे गुरू पिता का आर्शीवाद लेती हूं।
जिन्होंने ज्ञान का दीपक जलाया है मेरे मन में।
मैं अपने उन गुरू को बारम्बार प्रणाम करती हूं।

मेरे मन के अंधेरे को मिटाकर रोशनी भर दी।
भगा अज्ञानता को, ज्ञान की अनमोल धरोहर दी।
मेरे गुरू आपने सद्मार्ग पर चलना सिखाया है।
सही क्या है ,गलत क्या है, फर्क करना सिखाया है।

ज्ञान ऐसा खजाना है,
जो कभी खो नहीं सकता।
ज्ञान को पा लिया जिसने,
वो रंक हो नहीं सकता।

वेदों और पुराणों ने गुरू महिमा को गाया है।
ईश्वर भी ज्ञान लेने को स्वयं प्रथ्वी पर आया हैं।
कहूं क्या शब्द मैं उनको ,वो भी उनके सिखाएं हैं।
इसलिए ईश्वर से पहले ,गुरू का नाम आता है।
रूबी चेतन शुक्ला
अलीगंज
लखनऊ

Language: Hindi
Tag: Poem
3 Likes · 2 Comments · 436 Views

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