गुरूर
मिट जाएगी रूह एक दिन
मिट्टी में मिल जाएगी,
शान-ए-शौक़त जागीर तेरी
फ़क़त यहीं रह जाएगी,
ग़ुरूर-ए-मिलकियत कब तलक
आख़िर ये भी यहीं रह जाएगी।
अता फरमाता है वक़्त,
ख़ता नहीं करता,
ग़म मिटाता है वक़्त,
सताया नहीं करता।
ये तो अहं है मानव का
खुद को खुदा समझ बैठा,
है ज़माना ही दौलत जिसकी ‘मयंक’
खुद को खुदा नहीं समझता।
: के. आर. परमाल ‘मयंक’