दरिद्रों पर दमन
मॉंझ बाजार में हिंसा होती,
पर कुकर्मी स्वतंत्र घूमता,
क्योंकि नेता, वकील नहीं,
होता वह दरिद्र मनुज है।
दरिद्रों पर दमन होता,
प्रशासन कुछ न करता,
कब तक चलेगा यह ,
रिश्वत का श्रृंखला लोक में।
दरिद्र, निर्वाच्य, निराश्रय मनुज ,
त्रासकर नसैनी रहते सदैव यहाँ ,
कब मिलेगा इन्हें अपना रक्षक ?
मिलेंगीं स्वतंत्रता की जिंदगी है।
कुकर्मी का सत्यानाश करो ,
दरिद्रों को अप्रतिबंध करो ,
कुकर्मी को दंडाज्ञा दिलाओ ,
दरिद्रों को आजादी दिलाओ।
नाम – उत्सव कुमार आर्या