गुरु वंदन
वंदन करूँ गुरु श्रेष्ठ, प्रकृति हे तुम्हारी ।
तू आकर से सहित हो, आकर से रहित हो,
हर रूप में उदित हो, हर कांति में निहित हो,
बन कर विशाल तरूवर, संताप को हरी तू ,
बन कर विशाल सागर, हर भ्रांति से लड़ी तू ,
तेरे बिना हे जननी, जीवन कहाँ हमारी,
वंदन करूँ गुरु श्रेष्ठ, प्रकृति हे तुम्हारी ।
जन्म तो दी निज मात्, पर कर्म तुझसे पाई,
अज्ञान तम मिटा कर, तू ज्ञान ज्योत जगाई,
अंधकार से ग्रसित हूँ , दोष-पाप से वलित हूँ ,
अहंकार गृहाश्रित हूँ, चित-चेतना गलित हूँ,
ज्ञान बिना जननी ,हूँ भार सम् हे मही! तुम्हारी ।
वंदन करूँ गुरु श्रेष्ठ, प्रकृति हे तुम्हारी ।
उमा झा