गुरु वंदना (अरसात सवैया)
संयोजन -: भगण भगण भगण भगण भगण भगण भगण मगण।
7 भगण, 1 मगण, कुल -: 24 वर्ण!
गणावली -: 211- 211- 211- 211- 211- 211- 211- 222।
साधक हूँ निज काव्य रचूँ हर टंकण में रत ध्यान लगाईके।
आवत जावत शब्द समूहक को गिन ज्योति सप्रेम जलाईके।।
सिद्धि यही गुरु ज्ञान मिले जब काव्य लिखे पद आप चढ़ाईके।
कोटिश वंदन है गुरु को अब आप सुधार सुजान बनाईके।।
शेष गणेश महेश बढ़े गुरु ज्ञान बिना यह क्या कहलाते जी।
राम व लक्ष्मण आदिपुरातन शिष्य न श्रेष्ठ चरित्र सुनाते जी।।
दो गुरु ज्ञान हमें अब तो करजोर करे यह आंशिक बाते जी।
नाम हमार न हो न सही पर हे गुरु चेतन ये जग पाते जी।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित २०/०१/२०२३)