गुरु महिमा
आधार छंद – दोहा
मात्रा भार – (13, 11)
मुखड़े के दोनों पद तुकान्त एवं युग्म का पूर्व पद अतुकांत एवं पूरक पद तुकान्त अनिवार्य
समांत — आन –अपदांत
दोहा विधान – विषम चरण के अंत में 12 एवं सम चरण के अंत में 21 अनिवार्य
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दोहा गीतिका
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गुरुवर महिमा आपकी, कैसे करूँ बखान।
मसि कागद भी कम पड़े,अन्त न हो गुणगान।
होता गुरु आशीष है , सदा हमारे संग।
जीवन नैया पार है, नित बढ़ता है ज्ञान।
कच्ची मिट्टी शिष्य है, देता गुरु आकार।
इस सुंदर आकार से, मिलता उन्नत स्थान।
गुरु प्रभु हैं दोनों खडे, पड़ना किसके पैर।
यह कहती है ईशता, रख गुरुपद का मान।
नीरज इस संसार में, बसते नाना लोग।
गुरुकृपा मिलती रहे, तो होेत हैं सुजान।
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नीरज पुरोहित रूद्रप्रयाग(उत्तराखण्ड)