गुरु महिमा
गुरु महिमा
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जीवन की इस डगर में,
उलझन और अटपटा है ।
प्रेम सद्भाव के अलावा,
झगड़ों का लफड़ा है।
ईर्ष्या क्यों करता है मानुष,
अपनों से बिछड़ जाना है।
मत कर इतना भोगविलास,
जीवन में प्रेम जगाना है ।
घमंड ना कर इस चोला पर ,
मिट्टी में मिल जाना है।
चारदिन की जिंदगानी है,
गुरु की महिमा गाना है।।
दीन दुखियों की सेवा कर लो,
बड़े से बड़े पाप धुल जाएगा ।।
सतगुरु के निकट आओ ,
जीवन की आनंद मिल पाएगा।।
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कवि डीजेन्द्र क़ुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभवना, बिलाईगढ़, बलौदाबाजार (छ. ग.)
मो. 8120587822