गुरु पूर्णिमा
जहाँ जो ज्ञान मिल जाता उसे श्रद्धा से लेती हूँ
नदी सी ज़िन्दगी में ऐसे अपनी नाव खेती हूँ
किसी को मैं नहीं छोटा बड़ा ही मानती देखो
सिखाता जो मुझे उसको गुरु का मान देती हूँ
हमने खुद को महकाया है , सुन्दर भावों के चंदन से
खूब सजाया है हिंदी को,मिलकर इसके स्वर व्यंजन से
बिन सोचे समझे ही हमने ,पाप अनेकों कर डाले हैं
लेकिन पुण्यों का फल पाया, हमने केवल गुरु वंदन से
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद