गुरु तत्व और समीक्षा
जन्म हुआ निर्बोध आज,
बोध !
जब लखावण लाग्या.
रहग्या रहप जब दूध मायत ..
तेरी छाती माहि आवण लाग्या.
जुड़े थे सांस मह सांस.
रोम रोम पुलकित था.
हर भाव प्रति ध्वनित था.
आज चेतन
चेतना अभीभूत हुआ.
खुशी हुई भरपूर आज.
जो प्रकृति सुमति लाई.
होंगे खुश भरतार आज.
मेरा संदेशा लाई.
जो आज पितृ ऋण से मुक्ति पाई.
छोडूं सूँ मेरे लाल आज ..
तुझे तेरे नाम हवाले.
भूख प्यास नींद काम क्रोध मद लोभ परखने आवेंगे.
मोह माया यो सांसारिक जाल अपना गाहक बनावेंगे.
तरह तरह की चकाचौंध तेरा ध्यान हटावेंगे.
पहचाणियों तेरे अपने जैसे कम ही पाएंगे.
मूलभूत को भी रोग बताएंगे ..गुरु का चोला ओढे पायेंगे.
फँसा पंछी तारकोल माहि तडफते पावेंगे.
तेरी मुक्ति की अर्जी लगावंगे.
असल हंस चेतना तेरी..क्षीर नीर में भेद बतावेगी.
सांस सांस तू सुमिरन करियो.
विषय विकारों के प्रति तू जगीयो.
खुद की याद अंतस रखियो.
भेद मिले तो ..कष्ट मिटे सब.
अपना जीवन महेंद्र सफल समझियो.
~डॉ_महेन्द्र
महादेव क्लिनिक
मानेसर (हरियाणा)