गुरु : ज्ञान के दीपक
आप हैं जग के दीपक देखो,
ज्ञान की बाती जलाते गुरु हैं।
लौ जस खुद ही जलकरके ही,
तम को दूर भगाते गुरु हैं।
शोक विशाद या धुँध के बादल,
सबको ही दूर भगाते गुरु हैं।
रूप गुरु प्रभु भी धर आते,
नैया भव पार लगाते गुरु हैं।
बाल्मीकि को ज्ञान दिए,
तुलसी को मान दिलाते गुरु हैं।
अंगुलिमाल बड़ा था भयानक,
चरणों में अपने झुकाते गुरु हैं।
प्रेम मिले कबीरा जस अइसन,
गुरुमंत्र में ‘राम’ सुनाते गुरु हैं।
आस्था हो एकलव्य के जैसा तो,
मूर्ति बन ज्ञान सिखाते गुरु हैं।
कालिदास थे ज्ञान के भसुर,
उनसे भी ग्रंथ रचाते गुरु हैं।
पुरुषोत्तम श्रीराम चन्द्र को,
मर्यादा मूल्य बताते गुरु हैं।
जो मन चंगा कठौती में गंगा,
मनुर्भव पाठ पढ़ाते गुरु हैं।
गाते हैं वेद बताते पुराण भी,
ईश से आगे कहाते गुरु हैं।।
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