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10 Jun 2023 · 3 min read

गुरु चालीसा

।।दोहा।।
गुरु चरणों में शीश रख, करता हूँ प्रणाम।
कृतज्ञ मुझको कीजिये, आया तुमरे धाम।।

मूरख मुझको जानके, गलती जाना भूल।
झोली फैला मैं खड़ा, पाने पग की धूल।।

।।चौपाई।।

जय गुरु ज्ञान गुणों की गागर,
आपहिं हमरे गिरधर नागर ।।१।।

जय मुनीष तीन लोक उजागर,
इस जग में तुम विज्ञ का सागर ।।२।।

जो गुरु आज्ञा सर पर धारे,
सकल काज मनोरथ सँवारे ।।३।।

पत्थर को भी पारस कर दे,
प्रीत मान से झोली भर दे ।।४।।

मात, पिता, मित्र संग भ्राता,
तुम सम जगत नही रे दाता ।।५।।

जो जन शरण तुम्हरे आता,
तीन लोक में भय नहि पाता ।।६।।

गुरु छवि जैसे शशि प्रकाशा,
जीवन की साँची परिभाषा ।।७।।

गलत बात पर तुमने डाँटा,
गलती पर था मारा चाँटा ।।८।।

नरम गरम का मिश्रण तुम हो,
खटटा मीठा स्वाद परम हो ।।९।।

मात पिता सम तुम गुरुकुल में,
चर्चा होती हर घर कुल में।।१०।।

डाकू को मिले संत ज्ञानी,
मरा मरा जप रामा वाणी।।११।।

गुरु महिमा जो कोई गावें,
ईश मिलन का पथ वो पावें।।१२।।

जिस पर कृपा गुरु की आवें,
भक्ति शक्ति मन में बिसरावें।।१३।।

आखर आखर जोड़ सिखातें,
शबद शबद मतलब समझाते ।।१४।।

विद्या न देखे नर या नारी,
गुरु की लाठी पड़ती भारी ।।१५।।

जिसने गुरु की बात न मानी,
इनका मारा मांगे ना पानी।।१६।।

अनुभव से दस दिशा निहारें
ज्ञान बाँट कल सभी सँवारे।।१७।।

जब हल वो ज्ञान का चलातें,
भाव त्याग बलिदान जगातें।।१८।।

ज्योत वीरता परम जगावें,
साध ज्ञान भय मुक्ति करावें ।।१९।।

सभी साज़ सुख अपने तज़ते,
कोरे कागद पर गुल सजते ।।२०।।

देश काल की गति समझातें
भू-नभ से परिचय करवातें ।।२१।।

शिक्षा का जब बिगुल बजावें,
मूरखपन की परत हटावें।।२२।।

जिस पर किरपा गुरु की होई,
उस को कमी न होवे कोई ।।२३।।

नाम खेवन गुरु सुखदाई,
धारक जीव पार हो जाई।।२४।।

कोटिश साधक मुनि अवतारा,
सतगुर चरण-कमल मन धारा।।२५।।

सब देवों पर गुरु जी भारी,
गुरु तप से सब माने हारी।।२६।।

केवल न देत ज्ञान किताबी,
जीवन का हर रंग दिखाती ।।२७।।

गुरु जी जब राह दिखावे,
गलती को भी सही करावें ।।२८।।

खुद जलता पथ करता रोशन,
जन जन में भर देता कौशल।।२९।।

खेल कूद भी हमे सिखातें ,
शारीरिक बल संग बढ़ाते ।।३०।।

मात पिता फिर गुरु की बारी,
जिन पर जाती दुनियाँ वारी ।।३१।।

गुरुवर जी की महिमा भारी,
राम किशन जाते बलिहारी।।३२।।

जनम मरण तक आपहि गाथा,
सकल जनम जुड़ा रहे नाता ।।३३।।

जो गुरु जप का नाम विचारे,
सकल काम पूरण हो जावे ।।३४।।

जो गुरु नाम आरती गावें,
जन्मो जन्मो तक सुख पावें ।।३५।।

घट के मानव को पहचानों,
हर इक मन को गुरु सम मानों ।।३६।।

सभी मनुज है शिक्षक ज्ञानी,
शिष्य सकल जहां में अज्ञानी ।।३७।।

जिसने भी किया गुरु अनादर,
मिला नही जग में फिर आदर ।।३८

कहत धरम भाई की वाणी,
जो समझे मानष वो ज्ञानी ।।३९।।

जो पढ़ेगा यह गुरु चालीसा,
पावे सिद्धि साखी गौरीसा ।। ४०।।

।।दोहा।।
ज्ञान जगत को बाँटतें, शिक्षक का यह काम !
शीश नवाकर लीजिए, मिले ज्ञान जिस धाम !!

बिन गुरु न गति मिले, यह कहते विद्वान !
संगत गुरु की जाइये, इन चरणों भगवान् !!

*** *** ***

स्वरचित : डी के निवातिया

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