गुरु के अनेक रूप
संतान जब जन्म ले ,
तब माता होती उसकी प्रथम गुरु ।
माता संस्कार सिखाती अपने संतान को ।
संतान जब कुछ बड़ी हो जाए ,
तो पिता होते द्वितीय गुरु ,
जो दुनियादारी सिखाते संतान को ।
संतान जब किशोरावस्था में जाए,
तो शिक्षक होते तृतीय गुरु ,
शिक्षण निपुण बनाते आत्मनिर्भरता हेतु शिष्य को ।
वैसे तो जीवन भर इंसान सीखता ही रहता है ,
समय और परिस्थितियां होती है
मनुष्य की चतुर्थ गुरु।
जो परिपक्व बनाती मनुष्य को ।
प्रकृति और पर्यावरण है मनुष्य की अंतिम गुरु ,
जो उसे प्रकृति के सभी अंश ,
जड़ चेतन ,जीव जंतु और अन्य मनुष्यों के संग ,
समरसता से जीना सिखाती ।
और अंत में उसकी अंतिम यात्रा में भी साथ रहती ।
इस पर प्रकार मनुष्य जीवन जन्म से मरण तक ,
गुरु जैसी शाश्वत और महान विभूति पर निर्भर है ।
चाहे वोह किसी भी रूप में हो ,
वंदनीय है आदरणीय है ।
गुरु महान है ।