गुरु की महिमा
गुरु की महिमा
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गुरु ही वह कल्पवृक्ष, जो मन चाहा फल देता है।
गुरु ही वह पारस पत्थर, लोहे को कंचन करता है।।
गुरु वही जो “ईश्वर,,को पाने का मार्ग दिखाता है।
इसलिए गुरु”प्रभु,, से पहले पूजा
जाता है।।
बिना गुरु के ज्ञान नहीं, बुद्धि भी नहीं आती ।
कितनी भी करो साधना,विधा पास नहीं आती।।
गुरु की करो बंदना ,बदलो भाग्य के लेख ।
बिना आंख के सूर ने, कृष्ण लिए थे देख ।।
गुरु की पारस नजर से,लोह बदलता रूप।
बुद्धि का होता विस्तार,ऐसी शक्ति अनूप।।
गुरु चरणों की वंदना, खुशियां दे अपार।
गुरु के पदरज तार दे,मिले मुक्त के द्वार।।
गुरु से लेकर प्रेरणा,उर में रख विश्वास।
श्रृद्धा और भक्ति से, बदले देश के इतिहास।।
जीवन के घोर अंधेरों में, गुरु प्रकाश बन जाता है।
हर लेते वो दुःख सारे, खुशियां मन में लाता है।।
सत्यमार्ग पर जो चलना ,हम सबको
सिखातें है।
गुरु ही असली पथ प्रदर्शक, इसीलिए
कहलाते हैं।।
खुद तपते हैं राहों में, कुंदन हम सबको
बनाते हैं।
जलते हैं सूरज बन, उजियारा हमको देते हैं।।
संसार को रंग बिरंगे फूलों सा, बगीचा बनाते हैं
गुरु ही हैं तारों को रोशनी दे,खुद सूरज सा जगमगाते हैं।।
सुषमा सिंह*उर्मि,,