गुरु और लघु
गुरु बिन ज्ञान कहाँ?
गुरु बिन ध्यान कहाँ?
गुरु बिन कहाँ जीवन,
गुरु बिन सम्मान कहाँ।।
गुरु बिन राज कहाँ?
गुरु बिन साज कहाँ?
नहीं चढ़ पाये शिखर,
गुरु का आगाज कहाँ।।
इतिहास गुरु गाथा है,
गुरु ब्रम्ह बन जाता है।
गुरु बिन मिले ना गोविंद,
गुरु ही अधिष्ठाता है।।
सदगुरू की खोज में है,
लघु सी इस सोच में है।
बिक नहीं सकता वह,
गुरु एकलव्य बनाता है।।
बदलते इस परिवेश में,
लघु भी गुरु के वेश में,
पढ़े सुदामा कृष्ण संग,
संदीपनी से गुरु कहाँ?
गुरु बिन ज्ञान कहाँ—–
(रचनाकार कवि:- डॉ शिव”लहरी”)