गुरु अमरदास के रुमाल का कमाल
केवल डेढ़ वर्ष तक गुरुपद को सम्हालने वाले गुरु अमरदास गोईंदवाल नगर और 84 सीढि़यों वाली पवित्र बावली के निर्माणकर्ता तो रहे ही हैं, गुरुजी ने गुरु रामदास को नया नगर अमृतसर बसाने की भी प्रेरणा दी।
गुरु अमरदास अत्यंत धार्मिक अभिरुचि थे। परमात्मा की हर शक्ति उनके भीतर विराजमान थी। उन्होंने अपने अनन्य भक्त भाई पारो, लालो, दीया, मल्लू, थाही आदि का उपदेशों के द्वारा उद्धार किया। गुरुजी ने भक्ति को स्पष्ट करते हुए उसके तीन प्रकार बतलाये। उन प्रकारों को स्पष्ट करते हुए गुरुजी ने कहा कि ‘नवधा भक्ति’ के अन्तर्गत भक्त सतनाम का सुमिरन परमात्मा के चरणों में लीन होकर दास्य भाव से करता है। ‘प्रेमा भक्ति’ में भक्त रात-दिन परमात्मा से प्रेम करते हुए मस्त रहता है। ‘परा-भक्ति’ के अन्तर्गत भक्त का चित्त आनंद स्वरूप हो जाता है जो कि समस्त जगत के कल्याण का एक रूप है।
गुरुजी ने जगत के कल्याणार्थ अपने भतीजे सावनमल को एक पवित्र रूमाल देते हुए कहा-‘‘इस रुमाल को सदैव हाथ में धारण रखना, दूसरे गुरुपद के मनोवांछित कार्य सम्पन्न होंगे। साथ ही तुम्हारी हर पवित्र कामना को यह रुमाल पूरी करेगा।’’
एक समय की बात है जब एकादशी व्रत का दिन था। गुरुजी के भतीजे सावनमल हरिपुर में थे। इस दिन हरिपुर के राजा की आज्ञा थी कि कोई भी अन्न ग्रहण नहीं करेगा। किंतु सावनमल ने एकादशी के दिन भी रेाज की तरह स्वयं खाना बनाकर खुद खाया और अन्य भक्तों को भी खिलाया। यही नहीं इस प्रसाद को बहुत से हरिपुरवासी भी ले गये।
राजा को जब इसका पता चला तो वह क्रोधित हो गया। उसने सावनमल को तुरंत अपने दरबार में बुलवा लिया और पूछा-‘‘एकादशी व्रत के दिन जबकि कोई अन्न ग्रहण नहीं करता है, तुमने खाना बनाकर स्वयं क्यों खाया और अन्य लोगों को क्यों खिलाया? यहां तक कि हमारी प्रजा में अन्न से बनी रोटियों को प्रसाद के रूप में बांटकर तुमने जो अपराध किया है, उसे देखते हुए हम तुम्हें प्राणदण्ड तो नहीं, किन्तु कैद करने का हुक्म देते हैं।’’
सावनमल ने कहा-‘‘ राजन्! रोज की तरह यह कार्य इसलिये किया गया क्योंकि हमारा गुरुपरिवार इस तरह के व्रतों में विश्वास नहीं रखता।’’
यह सुनकर राजा आगबबूला हो गया और उसने अपने मंत्री से कहा-‘‘इसने हमारी आज्ञा का उल्लंघन किया है अतः इसे कैद कर लिया जाये।’’ मंत्री ने सावनमल को कैद खाने में डलवा दिया।
इस घटना के दूसरे दिन राजा के लड़के को हैजा होने के कारण उसकी मृत्यु हो गयी। महल में शोक छा गया और राजा-रानी सहित प्रजाजन विलाप करने लगे।
तभी राजदरबार के पुरोहित और ब्राह्मणों ने राजा से कहा-‘‘ महाराज! आपने निर्दोष सिखों को कारागार में डाल दिया है, इसी कारण आपको पुत्र-वियोग सहना पड़ रहा है।
यह सुनते ही राजा ने समस्त सिखों को सावनमल के साथ कारा से मुक्त कर दिया। कारा से मुक्त होने के बाद सावनमल ने राजा को संदेश भिजवाया कि वह उसके पुत्र को जीवित कर सकते हैं। राजा ने तुरंत ही सावनमल को महल में बुलवा लिया। सावनमल ने राजा के पुत्र की मृतकाया के समीप ‘जपुजी साहब’ का पाठ किया और गुरु अमरदास से प्रदत्त रूमाल के कोने को धोकर उसकी दो तीन बूंदें लड़के के कान में डाल दीं। ऐसा होते ही राजा का पुत्र जीवित हो उठकर बैठ गया। ये चमत्कार देख राजा- रानी सावनमल और उनके गुरु के प्रति श्रद्धानत हो उठे। उन्होंने सावनमल को ढेर सारा धन व वस्त्र दिये और सतनाम का जाप करने लगे।
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