गुरुवाणी
एक महात्मा के साथ उनका एक शिष्य रहता था। वह बड़ी श्रद्धा और लगन से गुरु की सेवा करता था। एक दिन गुरु ने शिष्य से कहा कि वह बस्ती में चला जाय और वहाँ सेठ धनी राम के यहां जाकर कहे कि उसे गुरु जी ने भेजा है।
गुरु का आदेश पाते ही शिष्य बस्ती की ओर चल दिया और वह सेठ धनीराम के यहाँ पहुँच गया।
शिष्य को देखते ही धनी राम को स्मरण हो आया कि वह जो सामग्री आश्रम को को भेजते थे इस बार नहीं भेज पाये हैं। उन्होंने शिष्य के जलपान की व्यवस्था की और आश्रम को भेजे जाने वाली वस्तुओं का प्रबंध करने लगे।इसी मध्य कुछ पुरुषों व स्त्रियों की दृष्टि शिष्य पर पड़ी और वे सब उस शिष्य को आश्चर्य और कुतूहल से देखने लगे। वे सब उस शिष्य को मुग्ध और प्रशंसा के भाव से देखने लगे। पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला वह युवक कुछ न समझ सका ।वह उलझन में पड़ कर सेठ धनीराम द्वारा प्रदत्त सामग्री लेकर आश्रम को चल पड़ा। वहॉं पहुँच कर उसने अपनी उलझन गुरु जी को बताई और पूँछा वे स्त्री-पुरुष उसे उस प्रकार क्यों देख रहे थे। वहाँ ऐसा क्या था? गुरु जी ने उसे एक सामान्य सा उत्तर दे दिया कि वे सब तुम्हें देख रहे थे तथा तुम्हारा प्रभा मण्डल देख कर खुश हो रहे थे। गुरु जी का संक्षिप्त उत्तर उसकी जिज्ञासा शांत न कर सका और उन्होंने भी उसको कुछ अधिक बताना उचित नहीं समझा। बात आई गई हो गई। शिष्य का जिज्ञासु मन शांत न रह सका और वह लगातार इस बारे में चिंतन करने लगा।
एक रात्रि के चौथे पहर में उस शिष्य को स्वप्न में एक दिव्य पुरुष के दर्शन हुए। उनका मुख सूर्य के प्रकाश सा चमक रहा था। उनके दर्शन से उसका मन आह्लादित हो गया और उसे असीम आनन्द का अनुभव हुआ। उसे याद आया कि सेठ धनी राम के यहाँ उसको देख कर उन स्त्री पुरुषों की दशा भी ऐसी ही हो गई थी जैसी इस समय उसकी हो रही है।
प्रातः उठकर शिष्य ने गुरु जी को अपनी स्वप्न की बात व अपना अनुभव बताया। गुरूजी ने कहा, ‘बेटा वह उन दिव्य पुरुष का तेज था जिससे उनका मुख सूर्य के समान चमक रहा था तथा तुम्हें आह्लादित कर रहा था। ठीक उसी प्रकार तुम्हारा तेज भी उन स्त्री पुरुषों को जिन्होंने धनी राम के यहाँ तुम्हें देखा था, को प्रभावित कर रहा था और वे सब आनन्दित हो रहे थे। यह तेज सभी व्यक्तियों में होता है जो उनका प्रभा मण्डल या आभा मण्डल कहलाता है। जो स्त्री पुरुष सात्विक वृत्ति के, धर्माचरण करने वाले, सत्य बोलने वाले और ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले होते हैं उनका प्रभा मण्डल अत्यधिक तेजोमय व प्रभावशाली होता है उससे लोग आनन्दित होते हैं और उन्हें सुख प्राप्त होता है। जो लोग दुराचारी, लम्पट , पापिष्ठ ,असत्य बोलने वाले विद्यमान रज और वीर्य का बड़ा प्रभाव पड़ता है। ये रज और वीर्य शरीर के रस हैं तथा सार तत्व हैं। जो लोग असंयमित यौनाचार से इस सार तत्व को नष्ट कर देते हैं उनके शरीर फलों में से रस निकल जाने के पश्चात छूँछ जैसे हो जाते हैं। उनका आभा मण्डल नष्ट हो जाता है और उनका किसी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इन रसों के कारण ही शरीरों में बल-बुद्धि का विकास होता है तथा वाणी में जोश और शरीर में ओज पैदा होता है। ओज के कारण ही शरीर कांति मय दिखाई देता है। शरीर से ओज की किरणें फूटती सी दिखाई पड़ती हैं और प्राणी सुन्दर दिखता है। यह बिलकुल भी आवश्यक नहीं है कि सुंदरता के लिए कोई गौर वर्ण हो।
शिष्य बड़ा तन्मय हो कर गुरु की बातें सुन रहा था। उसकी आँखें मुँदी हुई थीं। उसके मुख पर सन्तुष्टि के भाव दिखाई दे रहे थे। गुरु के ज्ञान से उसका संशय
दूर हो चुका था।
जयन्ती प्रसाद शर्मा, दादू।