गुरुवंदना..
गुरुवंदना का कोई नही है नियत काल
गुरु से बढ़कर इस जग में दूजा नही महान।।
बार बार तव वंदन,प्रणम्य अभिनंदन
इस अबोध बालक का नित करते रहो मार्गदर्शन।
अकथ,अवर्णनीय गुरु महिमा,शब्दकोष है रिक्त
पुँजित प्रकाशमय गुरु गरिमा,स्नेह से करते सिक्त।
तम शूलों को चुनकर,सुमनों की वर्षा करते..
आलोकित जीवन पथ करते,निज दायित्व निर्वाह करते
जो प्रासंगिक है वर्तमान में, गुरु-शिष्य सम्बन्धों को सुदृढ़ हैं करते
मम अभिलाषा इन शब्दों में द्रष्टव्य किये देता हूँ
गुरु महिमा से अपनी लघुता का परिचय दिये देता हूँ।
गुरुओं की आजन्म कृपा रहे,नित शीश नवाता रहूँ सदा
आशीषों का कर सदा रहे,गुरुओं से माँगू यही सदा।।