मेरी क्षमता
मेरी क्षमता को तुम क्या नापोगे?
समंदर होते तो गहराई समझ लेते,
हवा होते तो रफ्तार समझ लेते,
पंछी होते तो ऊंचाई समझ लेते,
तमस होते तो अंधकार समझ लेते,
सूरज होते तो तपिश समझ लेते,
पर्वत होते तो विशालता समझ लेते,
पैमानों से हमें नाप लो ऐसी चीज़ नहीं हैं हम।
उतर कर इस दिल में चलोगे जब,
जमीन हमेशा क्षितिज के पार तक होगी।
देवों का पता नहीं,
पर अस्थियों के पिंजरे में झांक कर देखो,
हर हृदय में एक ब्रह्मांड की श्रृष्टि होती होगी।
में कहता हूं,
मुझे और चाहिए।
अत्यंत दुःख, अत्यंत पीड़ा,
अपार खुशियां, अपार सब कुछ।
कृष्ण विवर सा है हृदय में,
हर वेदना गलप कर लेता है।
तुम्हारी क्षमता है तो और लाओ,
आह भी ना करेंगे हम।
क्योंकि,
पैमानों से हमें नाप लो ऐसी चीज नहीं हैं हम।