गुरबत में है निम्न मध्यम वर्ग!
कल जब देश में आजादी के पचत्तर साल का उत्सव मनाया जा रहा था,तब निम्न मध्यम वर्ग के नागरिक अपनी रोजमर्रा की जरूरतों की पूर्ति के लिए अपनी ध्याडी मजदूरी के लिए सामान्य दिनचर्या के साथ घर से निकला और सांझ ढले दो चार सौ का जुगाड करके ही लौटा, उसे इसकी चिंता नहीं थी कि आज के दिन देश में राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस है और लोग इसे मनाने के लिए स्कूलों में, पंचायत घरों में,या आसपास के किसी सरकारी कार्यालयों में जाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा दे!या फिर रेडियो/टेलीविजन पर प्रसारित किए जा रहे कार्यक्रम को बैठकर देख ले।
कारण स्पष्ट है कि उसके सामने परिवार के पालन-पोषण का काम नितांत आवश्यक है, जिसे उसी को निभाना है, और वह उसी में व्यस्त रहा भी! उसके लिए एक दिन भी अवकाश करने की गुंजाइश नहीं है,कारण है बढ़ती मंहगाई और काम मिलने के प्रर्याप्त अवसर जो संयोग से उसके पास आया हुआ है! वह उसे गंवाना नहीं चाहता था!
यूं भी गांव कस्बे में रोज रोजगार के मौके नहीं आते हैं और उसे भी ऐसे ही जाया कर दिया तो,दूसरा उसकी जगह सेंधमारी नहीं कर देगा इसका भी कोई पता नहीं है, क्योंकि नियोक्ता के पास कई अन्य लोगों की फरियाद पहुंची रहती है,बस किसी के एक दिन भी ना आने से उसे चेता दिया जाता है कि छुट्टी नहीं करनी है मेरा काम प्रभावित हुआ तो मैं दूसरे को बुला लूंगा!
निम्न मध्यम वर्ग की हालत ऐसी है कि भीख मांग नहीं सकता,मदद की गुहार करे तो किससे करे,हर कोई अपने गाने गोडता रहता (अपनी परिस्थितियों को सुनाता रहता है) है।
ऐसा वर्ग जो अपनी मेहनत से अपने परिवार का पालन-पोषण करने में हाड तोड़ मेहनत करता है वह आज कल पांच किलो अनाज की राह भी देखने लगा है,चलो कुछ दिनों का रासन सरकार से मिल जाए तो दो चार सौ, या हजार दो हजार दुःख तकनीक में काम आ जाएंगे! मानकर बचत करने की कोशिश कर रहा है
ऐसे में यह निम्न मध्यम वर्ग आज के परिवेश में सबसे ज्यादा तकलीफ़ में गुजर बसर कर रहा है!
यह वही वर्ग है जो किसी की राय मसवरे में ना पड़कर खुद अपने राय बना कर जाहिर करता है और इसी के कारण सरकारें बनती बिगड़ती हैं, किन्तु एक बार सरकार बनाने के बाद यह फिर से हासिए पर चला जाता है! कारण साफ है कि फिर इसे ना तो बिना किसी लाभ के किसी जलसे में जाने की चाह होती है और न ही किसी पंचायत की बैठक में जाकर अपनी फरियाद सुनाने की फुर्सत, इसे तो बस काम पर ही ध्यान केंद्रित रखना है चाहे ध्याडी मजदूरी के द्वारा हो या अपने खेत खलिहान में अपनी फसल पात पर, फिर भला उसे क्या करना है किसी की चक्कलश बाज़ी में फंसकर रहने से, और यही अरुचि उसके लिए नुकसान दायक है,ना तो उसकी ओर किसी राजनेता का ध्यान जाता है और ना ही किसी सरकार का। ऐसे में वह किसी की भी वरियता में नहीं रह पाता है! और उसे भी कहां फुरसत है यह सब सोचने समझने की,तब कोई सरकारी इमदाद अगर बिना मांगे मिल जाए तो फिर उस ओर टकटकी लगाना तो बनता है!
ऐसे में हमारा यह तंत्र उस व्यक्ति को मुफ्त खोरी की आदत डालने का काम कर रहा है जो अपनी कड़ी मेहनत से कमा कर खाने का आदी था, आज जरूरत है तो इस बात की कि हमारे नागरिकों के खाली हाथों को काम दिया जाए, गांव में आधार भूत ढांचा खड़ा किया जाए, गोदाम बनाएं,बीज घर बनाएं, सड़क,नाली, सिंचाई गुलें, पंचायत घर, स्कूल, कालेज,मिलन केंद्र, पुस्तकालय, ग्रामीण उत्पादों पर निर्मित उधोग धंधे, पर धन खर्च कर रोजगार के प्रर्याप्त साधन तैयार किए जाएं ताकि कोई खाली हाथ नहीं रहे और ना ही किसी को पांच किलो मुफ्त अनाज की राह देखनी पडे!!
क्या यह करने के लिए तैयार है हमारी सरकार?