गुमान
सर पे जब भी किसीके बड़ी पगड़ियाँ दिखी
ज़माने को उनकी ख़ामियों में खूबियाँ दिखी l
फ़लक-बोस इमारतों के शहर से जब गुज़रा
हर गली के मोड़ पर टूटी हुई झुग्गियाँ दिखी l
झूठ को जब कभी देखा खूब सेहतमंद देखा
सच के माथे पे हमेशा घाव की पट्टियाँ दिखी l
जिन्हें लिबास नसीब न थे चिथड़े ढूंढ रहे थे
अमीरों के जिस्म पे कीमती धज़्ज़ियाँ दिखी l
बनाने को हार ज़ालिम मोती लेके चला गया
अपने घर के बिना ग़मगीन सीपियाँ दिखी l
-जॉनी अहमद ‘क़ैस’