गुमसुम सी साँसें क्यों हैं
गुमसुम सी साँसें क्यों हैं
बहक रही निगाहें क्यों हैं
रिश्तों मे ये उफ़ क्यों है
बहक रही जवानियाँ क्यों हैं
सिसकती साँसों का समंदर रोशन क्यों है
अपनों में अपनापन तन्हा क्यों है
जीत लेते नहीं लोग, मुहब्बत की बाज़ी क्यों हैं
दिलों में इतना ज़हर मौजूद क्यों है
भाई की आंखों में भाई के लिए नफ़रत क्यों है
बहनें हुईं परायी, अब पूछता उनको कोई नहीं क्यों है
पड़ोसियों की निगाहों में, तरक्की खलती क्यों है
अपना कहते हैं लोग, पर पराया समझते क्यों हैं
गुमसुम सी साँसें क्यों हैं
बहक रही निगाहें क्यों हैं
रिश्तों मे ये उफ़ क्यों है
बहक रही जवानियाँ क्यों हैं