गुमसुम रहने की आदत हो गयी है
गुमसुम रहने की आदत हो गयी है
हर दर्द को सहने की आदत हो गयी है
दर्द देना ही अब दुनिया का दस्तूर है
अब दर्द में ही जीने की आदत हो गयी है
कहते है ज़िन्दगी का हर एक पल मुस्कुरा के जीयो
गम के मुखोटें के ऊपर हँसी का
मुखोटा लगाने की आदत हो गई है
अपनों ने ही तो खुलकर हँसने नही दिया ज़िन्दगी भर
अपनों को भी अब रुलाने की आदत हो गयी है
जितना पास थे हम गैरों से
उतना ही दूर थे खुद से ही
अब खुद को ही ढूंढने को आदत हो गई है
अपना कौन, गैर कौन इस दुनिया में
पीछे धकेलकर खुद आगे बढ़ने की आदत हो गई है
मंज़िल तक साथ निभाने जानते थे कुछ अपने भी
ज़िन्दगी के अंतिम सफर में अब
अपनों के सहारे की आदत हो गई है