गुमराह
कर रहा गुमराह खुद सरदार अब ।
कैंसे मंजिल पाएं , बरखुरदार अब ।।
तोड़कर तटबंध सारे बह रही ।
इस नदी में है कहाँ मझधार अब ।।
अपने अपने फोन में सब व्यस्त हैं ।
मिलने जुलने के नहीं दिन चार अब ।।
टूटकर घर पुराने गिरते गए ।
मिलेंगे किस्सों में देहरी द्वार अब ।।
रात भर जिसने बिखेरी रोशनी ।
वह दिया भी हो गया लाचार अब ।।
सच कहीं दिखलाई देता है नहीं ।
लग रहे हैं झूठ के अम्बार अब ।।
रात में चोरी डकैती अब कहाँ ।
दिन दहाड़े लुट रहे बाजार अब ।।
– सतीश शर्मा, नरसिंहपुर
मध्यप्रदेश