गुमनाम ही रहने दो
शराफ़त नहीं ये अच्छी गुमनाम ही रहने दो
लियाकत नहीं ये अच्छी गुमनाम ही रहने दो
हर आदमी के दिल में लौ प्यार की जलती है
मोहब्बत नहीं है अच्छी गुमनाम ही रहने दो
ख्वाबों व खयालों की दूनियाँ में नहीं रहना है
हकीकत नहीं है अच्छी गुमनाम ही रहने दो
रहमो-करम के जहाँ में हम सब ही रह रहे हैं
इनायत नहीं है अच्छी गुमनाम ही रहने दो
धर्म में बंटकर ‘विनोद’ इंसानियत को भूल हैं
इबादत नहीं है अच्छी गुमनाम ही रहने दो
स्वरचित
( विनोद चौहान )