गुमनाम सा शायर हूँ अपने लिए लिखता हूँ
गुमनाम सा शायर हूँ अपने लिए लिखता हूँ
दिल से जो हुइ बातें उसके लिए लिखता हूँ
न तालियों से मतलब न दाद का सौदाई
तनहाई न इतराए इसके लिए लिखता हूँ
अच्छा है या बुरा है मुझको पता नहीं है
खामोशी गुनगुनाए इसके लिए लिखता हूँ
पागल हूँ मैं खुद ही से हँसता हूँ बोलता हूँ
फ़ुर्सत नहीं किसी को इसके लिए लिखता हूँ
सच कहने की आदत है हो चाहे खरी खोटि
कोई बुरा न माने इसके लिए लिखता हूँ
गुमनाम हो नामी हो शायर तो बस शायर है
जज़्बात संभल जाएँ इसके लिए लिखता हूँ