गुमनामी
एक अबोध बालक 💐अरुण अतृप्त
नाकाम इश्क़
टूट ही जाना था और तो उसके पास कोई चारा न था
छोड़ कर जबसे वो गई बीच भवँर में किनारा न था ।।
दर्द का समंदर उफ़नते जज्बात पीड़ा बिछोह की
इन सबके चलते भावनाओं ने उसको मारा न था ।।
डगमगाया तो था गहरे अंदर तक हिल भी गया था
लेकिन कमजोर नही पड़ा था न ही अभी हारा था ।।
सिसकियाँ उठी तो थी लेकिन उसने उन्हें दबा दिया
सामाजिक लोकाचार का आख़िर ये इशारा भी था ।।
मासूमियत को उसकी ये प्यार का पहला इनाम था
कहने को तो ये दर्द का अजीबोगरीब इन्तेख़ाब था ।।
सब कुछ सह गया अश्क़ पी गया अबोधिता के नाम
भूल पाना इस मन्ज़र को, उसके लिए जो बेमानी था ।।