गुब्बारा
गुब्बारे को देखकर, आया बचपन यादl
हम कितने नादान थे,कितने थे आजादll१
वो बचपन खोया कहाँ, मिले न उसकी रेख।
खुश हो जाते थे बहुत, गुब्बारों को देख।। २
बचपन मे मिलता कभी, छोटा-सा बैलून।
इतराता था इस तरह, जैसे अफलातून।।३
इन गुब्बारों की तरह, उड़ने दो अरमान l
सज जाने दो होठ पर, थोड़ी सी मुस्कानll४
इन गुब्बारों की तरह,दुनिया है रंगीन।
मन में तुम लाना नहीं, कभी भावना हीन।।५
सुन अपनी तारीफ तुम, करो नहीं यह भूल।
इन गुब्बारों की तरह, मत जाना तुम फूल।।६
केवल तुम करना नहीं,गुब्बारे का जिक्र।
मस्त हवा में उड़ चलो, छोड़ो सारे फिक्र।।७
बच्चों को बैलून से,बहुत अधिक है प्यार।
देखे लालायित नजर, मिले हमें दो चार।।८
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली