‘गुनाह’
नहीं होता हैं जमाना सितमगर
यहाँ तो कुछ इंसान सितमगर होते हैं…!
शायद जीते होंगे बेहोशी के आलम में,
तभी तो कर बैठते हैं गुनाह…!!
पर जब होश में वापसी होती हैं,
पैरों तले से जमीन खिसक जाती हैं…!
अपराध करते वक्त अंजाम से बेख़बर,
होश पाकर बेचैनी में खुद के साथ
अपनों पे भी सितम ढाते हैं…!!
एक पल की भूल….!..!..!!
अस्तित्व के मूल आधार को हिला देती हैं,
जान-बूझकर अमूल्य जिंदगानी गवां देते हैं…!!!