गुनाहों के पन्ने
छलक रहा था आंखों से
बरसों से छुपा दर्द सीने का
कुरेद दिया था पुराना जख्म
किसी ने अनजाने मे ।
बिखरा पड़ा था जमी पर
आज गमो का पुलिंदा
डूब गया था कतरा कतरा
जिगर का सैलाब मे ।
फिर से जी उठे थे वो पल
रूलाने को जी भर के
दफन कर दिया था जिन्हे कभी
यादों की कब्र मे ।
वक्त की सजा से आहत
रूक रूक कर सुबकता दिल
तलाशता रहा किये जुर्म को
गुनाहों के पन्नो मे ।।
राज विग 22.06.2022