गुनहगार तू भी है…
” गुनहगार तू भी है ”
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गुनहगार तू भी है,
जिसने हकीकत को नजरअंदाज किया।
तलवारें पास थी पर,
खुलेआम खुद पे ही क्यों वार किया।
कलम थी कागज भी था,
पर स्याही के क्यों पड़ गए लाले।
जुल्म सहने की आदत ही थी,
कि रोकर भी स्वीकार किया।
वो रचते गए साजिशें चुनचुन कर,
हमने ना प्रतिकार किया।
सेकुलर कहलाने की होड़ ऐसी,
कि सत्य पे ही प्रहार किया।
जर जोरू और जमीन,
सब पर दोधारी तलवारें चलती रही।
ये कैसा हिन्दुस्तान है जिसने,
हिन्दुत्व से सदा इन्कार किया।
दीदार करते गए हम जितना,
उतना ही हमें दरकिनार किया।
वारिस असली हम थे,
हम से ही सौतेला क्यूँ व्यवहार किया।
बेघरबार हुए हम हर ठिकाने से,
फर्ज अपना अब निभाने दो।
अपने ही वतन में हमने,
गुमशुदगी का जो यूँ इश्तिहार किया।
मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २४ /०२ /२०२३
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विक्रम संवत २०७९
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